Sunday, November 15, 2009

मनु शर्मा का पैरोल और मीडिया और हम

धीरज जी ने मीडिया, और सरकार को आड़े हाथो लेते हुए काफी कुछ लिखा है पर वो जल्दबाजी मे एक गलती कर गए मनु शर्मा उर्फ़ सिद्धार्थ वशिस्ठ के मामले मे , मनु को पैरोल मिली यह बात सही है पर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को कब फटकार लगाई यह वो ही बता सकते है? कोर्ट मे अभी तक पैरोल को लेकर कोई पत्र नहीं दाखिल किया गया है किसी भी जुर्म मे दोषी व्यक्ति जिसको कोर्ट ने सजा सुना रखी है उसके पैरोल पर विचार करने का अधिकार राज्य सरकार के पास सुरक्षित होता है और इसी अधिकार के तहत मनु को दिल्ली सरकार के द्वारा पैरोल पर बाहर जाने की इजाजत मिली. हाई कोर्ट ने सरकार से तिहाड़ मे बंद बंदियो की विचाराधीन पैरोल याचिका की सुचना मांगी थी न की खास तौर सिर्फ मनु शर्मा की. दूसरी बात यह कही है उन्होंने की हरयाणा चुनाव प्रचार मे मनु अपने पिता विनोद शर्मा के लिए चुनाव प्रचार कर रहा था यह किसी ने नहीं छापा न दिखाया ? खबर 'मैनेज' कर दी गई थी. तो जहा तक मेरी जानकारी है धीरज जी जिस मीडिया संस्थान से जुड़े है उसकी की पूरी टीम भी वहा चुनाव प्रचार को कवर करने मे जुटी हुई थी क्या उनकी टीम ने भी खबर को 'मैनेज' करने मे भूमिका अदा किया था. पत्रकार महोदय चोथे सतम्भ का कोई भी पहिया अदना नहीं होता है. उसके लिए देश पहले है मनु शर्मा बाद मे. खबर खाना नहीं है जिसे हम बासी और ताजा समझ कर खाए खबर- खबर है , खबर की अहमियत उसके आने पर पैदा हो जाती है. मनु की गलती सिर्फ यह थी कि वो मनु शर्मा है एक धनाढ्य घर का बेटा? एक राजनेता का पुत्र इसलिए सबसे ज्यादा खामियाजा भी उसे उठाना पड़ा है. पर गलती उसने कि है इसलिए वो सजा पाने का भी हक़ रहता है. पर एक कटु सत्य यह भी है की न जाने कितनी लड़किया हर रोज़ मौत के घाट उतार दी जाती है कभी इज्जत के नाम पर तो कभी किसी और कारणों से लेकिन उन के हत्यारो को सजा दिलवाने कोई नहीं आता न मीडिया न सरकार और न ही आम लोग अभी कल की ही घटना है दिल्ली मे सरेराह एक महिला चलती बस मे गुंडों के हाथो पिटती रही पर कोई उसकी मदद को आगे नहीं आया, यहाँ यह याद रखने की बात है की यह वोही दिल्ली है जो जेसिका के लिए जस्टिस मांग रहा था मोम्बतिया बेचने वालो की आमदनी मे इजाफा कर रहा था. पर उस महिला की मदद को आगे नहीं आया. अफजल जैसे कितने देश द्रोही यही इसी दिल्ली मे तिहाड़ मे रहते है पर हम है की नहीं बस मनु के नाम पर ही लिखना है. किसी सज्जन ने कहा की जब मनु को २ महीनो की पैरोल मिली तो विकास को सिर्फ एक दिन की क्यों मतलब उसे १ महीने के लिए बाहर भेज कर तीसरे कत्ल का इन्तेजार करना चाहिये था. पर अभी इस पर चर्चा करने का उचित समय नहीं आया है. पिछले कुछ दिनों से मनु शर्मा से सम्बंधित ख़बरे लगातार मीडिया मे सुर्खिया बटोरती रही. मनु के साथ एक और भी खबर गौर करने वाली थी, कि मनु का झगडा दिल्ली के पुलिस कमिश्नर वाईएस डडवाल के बेटे से हुआ था. अगर वो डडवाल का बेटा नहीं होता तो शायद पुलिस इतनी जल्दी हरकत मे नहीं आती और बात आई गई हो जाती. डडवाल का मीडिया प्रेम तो जगजाहिर है, आप ने लिखा है उनकी पारदर्शी व्यक्तित्व के बारे मे जुर्म तो भाई जुर्म ही है चाहे डडवाल का बेटा करे या कोई और पर यहाँ तो शेर को सवा शेर मिल गया न एक तरफ मनु तो दूसरी तरफ जूनियर डडवाल कम कौन है. मीडिया ने इस खबर पर पिछले दस सालो मे बहुत रो पिट लिया है टीआरपी भी आपके शब्दों मे बटोर ली पर अब क्या. शर्मा फॅमिली से बड़ी समस्या अभी हमारे सामने चाइना और पाकिस्तान प्रोजेक्टेड आतंकवाद का है, तो आत्ममंथन किसे करना चाहिये यह आप जरुर सोचियेगा .

1 comment:

  1. आपने खबर के दूसरे पहलू को उठाया है। इसी तरह के ना जाने कितने केस होते हैं जिनकी आवाज दब जाती है मीडिया वहां झांकने भी नहीं जाता। क्यों ? क्योंकि उनका तालुक्क लो प्रोफाइल घरानों से है। मेरे ख्याल से ये सोच बदलने की जरुरत है...

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