Monday, April 12, 2010

कुदरत से खिलवाड़ मत करो यह तो बच्चे है जी .................

भारत शुरू से ही एक धार्मिक भावनाओ वाला देश रहा है. और आज भी उसके साक्ष्य हमें चारो ओर देखने को मिल जाते है, चाहे काशी मे मोक्ष्य हो या वृन्दावन मे कान्हा के बचपन और युवावस्था की घटनाये. लोगो का धार्मिक रुझान साफ जाहिर है. आज की युवा पीढ़ी भी कम धार्मिक नहीं है और न ही वो मंदिर और मस्जिद जाने मे कोई गुरेज करती है. लेकिन इन सब से इतर एक और वर्ग है जो प्रकृति के नियमो को तोड़ने पर अमादा दिखाई देती है. मानव शरीर और उसका आचरण कर्मो और संस्कारो के अनुरूप ही कार्य करता है. पर आज के आधुनिक माता- पिता एक ऐसा बच्चा जनना चाहते है जो सुपरमैन तो नहीं पर ऐसा जरुर होना चाहिये जिसके अंदर कोई भीं बुरे कर्म या कमी न हो. इसके लिए बाकायदा गर्भावस्था का समापन वो ज्योतिषी को महूर्त दिखा कर कर रहे है. उस तय समय सीमा मे डॉ. आपरेशन के द्वारा बच्चो को धरती पर लाने का कार्य सम्पन कर रहे है. जो निहायत गलत है और प्रकृति के नियमो के बिलकुल खिलाफ है. माता- पिता का तर्क यह है की इससे हम अपने बच्चो को बहुत सारी बुरे ग्रहों के प्रभाव से बचा लेंगे. आप जरा सोचिये की अगर ऐसा होता तो क्या हर घर मे एक प्रधानमंत्री और विश्व सुंदरी न पैदा हो जाते. सबसे मजेदार बात तो यह है ऐसा करने वाले लोगो की तादाद मे पढ़े लिखे और उच्च पदों पर बैठे लोगो की जमात सबसे ज्यादा है. जिनके पास अपने होने वाले बच्चे को देने के लिए न तो समय है और न ही उचित शिक्षा इसलिए वो सोचते है है भैया ज्योतिष के हिसाब से बच्चा पैदा करो और उसे और कुछ देने की जरुरत नहीं है. वो अपने आप संस्कारवान बन जायेगा. यह परविर्ति जिस तरह से जोर पकरती जा रही है वो समाज के लिए और प्रकृति के लिए बहुत खतरनाक है. यह जो ज्योतिषी अजन्मे बच्चे का जन्म मुहूर्त के मुताबिक तय कर रहे है क्या उनका अपना भविष्य भी इसी तरह चल रहा है. मै एक ऐसे पंडित को जानती हू जो लोगो की कुण्डलिया बांचा करते थे. पर उनकी खुद की बेटी की अभी तक शादी नहीं हुई और दो बेटे है जो बेरोजगार है आगे की बात आप खुद ही कल्पना कर लीजिये. माता पिता को बच्चे को अपने मुताबिक पैदा न कर के प्रकृति के अनुरूप धरती पर आने दे और कोशिश करे की उसे अच्छे संस्कार दे कर एक अच्हा नागरिक और एक अच्हा इन्सान बनाये, जो आपके आने वाले भविष्य मे आपकी देख भाल कर सके, आपको प्यार दे सके. आप लाख जतन कर लो, मुहूर्त के मुताबिक जन्म दे लो पर जब वो एक अच्हा इन्सान ही न बन पाए तो क्या फायदा होगा, क्या होगा जब उसके अन्दर संस्कारों की कमी हो चरित्र का कमजोर हो. धार्मिक होना अच्छी बात है पर उसे हथियार बना कर कुदरत के खिलवाड़ अच्छा नहीं है. बच्चे तो कच्ची मिट्टी के समान होते है उसे आप जैसा रूप देंगे वो उसी रूप मे खुद को ढाल लेंगे. इसलिए उनके साथ खिलवाड़ मत करो. यह तो बच्चे है ............................ दिल के सच्चे है जी इन्हें जोड़ तोड़ से पैदा मत करो.
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Sunday, April 4, 2010

सानिया-शादी , मीडिया और टेनिस

पिछले कुछ दिनों से सानिया मिर्ज़ा और शोयब मालिक की ख़बरे समाचारों की सुर्खिया बटोर रहे है. 24 *7 के मानको की कसौटी पर खरा उतरने की दुहाई देने वालो को भी खबरों का टोटा पड़ गया है जिधर देखो सानिया और शोयब की तस्वीरे चमक रही है. लगता है जैसे भारत मे सिर्फ सानिया और उसका परिवार ही रहते है. देश की मीडिया ही नहीं सारे छुट भैया टाइप गली मोहल्ले की नेता भी इस मुद्दे को उठाए हुए है. चलो इसी बहाने उनकी तरफ इन खबरों के और TRP के भूखे लोगो की निगाह जाएगी. मै परेशान हू की क्या देश मे, और किसी भी खबर की हैसियत इतनी ख़राब है, या जनता के लिए जरुरी नहीं है की है यह बताना की फला जगह पर दुर्घटना हुई है, या देश के बेटे ने नासा के लिए चयनित हो कर देश का नाम रोशन किया है. पर नहीं दिखानी है तो सिर्फ सानिया की शादी और फ़िज़ूल के कोरे कयाश. कोई मुझे यह बताये की सानिया और शोयब मालिक के शादी के बाद सानिया देश का नाम किस तरह से रोशन करने वाली है. और भारत को क्या हाशिल होगा उसके पारिवारिक कामयाबी से, साथ ही दूसरा सवाल मै गीदर भबकी देने वाले बूढ़े शेर बाला साहेब ठाकरे से पूछना चाहती हू की शाहरुख के बयान पर उन्हें देश द्रोही करार देने वाली जबान इस बार क्यू नहीं आग उगल रही है, क्या आग ख़तम हो गई है या फिर हिम्मत नहीं है कुछ बोलने की, जब एक हिन्दुस्तान की लड़की की शादी एक पाकिस्तानी से होने जा रही है. शोयब भी खेल से तालुकात रहता है और साथ की उसके ऊपर एक भारतीय लड़की के साथ शादी करने का भी आरोप लगा हुआ है. क्यू नहीं इस बार बाप, बेटे और भतीजा जहर बोल रहे है क्यू ख़ामोशी की चादर ओढ़ ली है यह कह कर की यह सानिया का निजी मामला है. खबर इतनी बड़ी हो गई है की कुछ चुनिन्दा अखबारों के संपादको को सानिया की शादी का मामला बड़ा लग रहा है न की ये, गृह मंत्री चिदंबरम देश की सुरक्षा निति को बदलने की कोशिशो मे लग गए है. एडिटोरिअल मे बजाय इसके सानिया और सोहराब की शादी को भारत पकिस्तान के बीच के रिश्ते सुधारने की कोशिशो की पहली कड़ी बताया है. क्या सानिया कोई शांति दूत है जो अपने कुर्बानी दे कर दो देशो के तल्ख़ हो चुके रिश्तो को सुधारने की राह पर चल रही है. देश मे और भी कई होनहार खिलाड़ी है जिन्होंने देश के लिए अभाव को झेल कर मेडल दिलाया है न की हैदराबाद की इस बाला की तरह मीडिया के कंधो पर चढ़ कर सुर्खिया बटोरी है. इसी भारत का एक होनहार खिलाड़ी सुशील कुमार जब उपेक्षाओ का शिकार होता है (कुश्ती) तो उस बेचारे को मीडिया मे इतनी जगह नहीं मिलती क्यूंकि वो सुर्खिया बटोरना नहीं जानता है. और न ही मुसलमान है जिसके लिए सब आगे आ जाये, न ही वो वोट दिलवा सकता है. पर यह सब सानिया बखूबी कर सकती है क्या सानिया को यह नहीं पता था की शोयब की पिछली जिंदगी से जो जिन्न बाहर आया है उसका पीछा खबरों के भूखे कर रहे होंगे. और जिस तरह शोयब सानिया के घर मे प्रकट होता अहै मीडिया के सामने क्या वो सोची समझी रणनीति का हिस्सा नहीं था. जिसे यह चैनल वाले एक्सक्लुसिव बता कर चला रहे है क्या वाकई वो एक्सक्लुसिव है या फिर ........................................सोचो ? क्यूंकि सानिया टेनिस खेलने आई थी पर बाद मे ऐसा लगा की खेल से ज्यादा उसका ध्यान सिर्फ इस बात पर है की वोह दिन भर मे कितनी बार और कौन से add मे दिखती है. इसलिए जरा गंभीरता से सोचो ................?