
कलम की ताकत सबसे बड़ी ताकत होती है, दुनिया की हर दौलत से बड़ी दौलत... गर यकीन न आये तो आजमा कर देख लो..............
Saturday, May 7, 2011
“राजीव गाँधी एक्सीलेंस अवार्ड” 2011- से सम्मानित क्रांतिकारिसिपाही श्वेता रश्मि
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से प्रकाशित ”सीमापुरी टाइम्स” राष्ट्रीय हिंदी समाचार पत्रिका समाज में विभिन्न क्षेत्रो में किये गए उत्कृष्ट कार्यों हेतु ”राजीव गाँधी एक्सीलेंस अवार्ड-२०११” का आयोजन स्पीकर हॉल कंस्टीट्यूशन क्लब वी.पी.हाउस रफ़ी मार्ग,नई दिल्ली में कर रही है.अवार्ड के लिए विभिन्न क्षेत्रो से लोगो का चयन किया गया है.यह अवार्ड श्री श्रीप्रकाश जायसवाल केंद्रीय कोयला मंत्री,भारत सरकार एवं अन्य वरिष्ट मंत्री गणों द्वारा प्रदान किया जायेगा.अवार्ड ग्रहण करने वाले प्रमुख लोगो में डॉ. ओ.पी.सिंह (पूर्व महानिदेशक स्वास्थ्य उ.प्र.),डॉ.संजय महाजन,सुश्री अलका लाम्बा (समाज सेवा),डॉ.जगदीश गाँधी,संस्थापक प्रबंधक (सी.एम.एस.), श्री ओ.एस.यादव (शिक्षा), तन्मय चतुर्वेदी-सा-रे-गा-मा-पा लिटिल चैम्प (टैलेंट हंट), श्री पंकज शुक्ल,संपादक,नई दुनिया ,श्री चंडीदत्त शुक्ल,वरिष्ट समाचार संपादक,स्वाभिमान टाइम्स,श्री अमलेंदु उपाध्याय,संपादक हस्तक्षेप.कॉम,श्री फज़ल इमाम मलिक,वरिष्ट उप संपादक,जनसत्ता (प्रिंट मीडिया), सुश्री श्वेता रश्मि,प्रोड्यूसर महुआ न्यूज़ (इलेक्ट्रानिक मीडिया) ,श्री अमिताभ ठाकुर,आईपीएस (समाज सेवा),श्री बालेन्दु शर्मा दाधीच (टेक्नोलाजी),श्री पंकज चतुर्वेदी,संपादक,प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया (लेखन), श्री ललित गाँधी (रियल स्टेट), श्री सुनील सरदार (सामाजिक परिवर्तन),श्री राकेश राजपूत (अभिनय),श्री एम.के.चौबे,जी.एम. ,अदानी ग्रुप (बेस्ट मैनेजमेंट),श्री कमल कान्त तिवारी (बाल सेवा),श्री विमलेश त्रिपाठी (साहित्य), आदि है

प्यारी मां
मेरे मित्र प्रमोद द्वारा लिखित एक प्यारी सी कविता जो माँ को समर्पित है .
सपने में आईं मां
कल रात सपने में आईं मां...
मूंदे नयनों में इक लौ जला गईं मां।
सालों पहले,
उंगली पकड़कर चलना सिखाया,
जिंदगानी की महफ़िल में इक शमा जलाया।
मगर,
इस वीरान शहर में,
जज़्बातों के श्मसान में,
अब, कोई अपनापन दिखाता नहीं,
अरमानों की सीढ़ियां चढ़ाता नहीं,
लड़खड़ाने पर भी कोई उठाता नहीं,
तब, मां की कमी खूब खलती है....।
देर रात जब,
रंगीन दुनिया बेनूर हो जाती है,
चंदा मामा भी आलस्य के आगोश में समा जाता है,
तब, रात की तन्हाई में,
दीये का उजाला लिए,
चुपचाप,
सिरहाने आती हैं मां....।
और,
बंद आंखों में
जीने की ललक जगा जाती हैं मां...
कहती हैं,
हसरतों की उड़ान टलने ना दो,
जिंदगी की रफ्तार थमने ना दो,
ये अंधेरा वक्त दो वक्त का है,
शाम-बेशाम क़ाफ़ूर हो जाएगा।
कल रात सपने में आईं मां...
मूंदे नयनों में इक लौ जला गईं मां।
सपने में आईं मां
कल रात सपने में आईं मां...
मूंदे नयनों में इक लौ जला गईं मां।
सालों पहले,
उंगली पकड़कर चलना सिखाया,
जिंदगानी की महफ़िल में इक शमा जलाया।
मगर,
इस वीरान शहर में,
जज़्बातों के श्मसान में,
अब, कोई अपनापन दिखाता नहीं,
अरमानों की सीढ़ियां चढ़ाता नहीं,
लड़खड़ाने पर भी कोई उठाता नहीं,
तब, मां की कमी खूब खलती है....।
देर रात जब,
रंगीन दुनिया बेनूर हो जाती है,
चंदा मामा भी आलस्य के आगोश में समा जाता है,
तब, रात की तन्हाई में,
दीये का उजाला लिए,
चुपचाप,
सिरहाने आती हैं मां....।
और,
बंद आंखों में
जीने की ललक जगा जाती हैं मां...
कहती हैं,
हसरतों की उड़ान टलने ना दो,
जिंदगी की रफ्तार थमने ना दो,
ये अंधेरा वक्त दो वक्त का है,
शाम-बेशाम क़ाफ़ूर हो जाएगा।
कल रात सपने में आईं मां...
मूंदे नयनों में इक लौ जला गईं मां।
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