Sunday, May 9, 2010

उसके रिश्तो की परत लोग प्याज़ के छिलकों के तरह बड़ी बेदर्दी से उतारने मे लगे..........

पीछे काफी दिनों से निरुपमा की हत्या और आत्महत्या की कहानी सारे न्यूज़ चैनल से लेकर अखबारों और न्यूज़ साईट पर भरी पड़ी है. एक पत्रकार को न्याय दिलवाने के लिए जिस तरह सब एकजुट हुए है वह काबिले तारीफ है. यह सवाल मेरे मन मे उठता है की आखिर क्यू निरुपमा को मारा गया या उसने खुद को मार दिया. जाँच की जा रही है और कुछ नतीजा भी निकल कर सामने जरुर आएगा. न चाहते हुए भी मे इस विषय पर लिखने को मै बिबस हो गई क्यूंकि मैंने देखा एक लड़की जिसकी जान गई और वो लड़का जिसने उसके साथ प्यार किया, उसके रिश्तो की परत लोग प्याज़ के छिलकों के तरह बड़ी बेदर्दी से उतारने मे लगे हुए है. पढ़े लिखे लोग समाज मे जिनका एक रुतवा है पहचान है उनकी सोच इस बात से ज्यादा दुखी है की उनके बीच शारीरिक रिश्ते थे, न की इस बात से की उसकी जान चली गई या ले ली गई, और खालिश देसी लफ्जों मे कहे तो वो पेट से थी. उसकी गलती सिर्फ इतनी थी की तथाकथित समाज के नियमनुसार उसने अपना पेट नहीं गिराया था. जिसकी वजह से उसकी जान गई. यह मेरा कहना नहीं है कुछ मानिये सज्जनों का है आपको मै साईट का लिंक भी दिए देती हू ताकि आप उनके विचारो को भी जान सके. खैर आगे चलते है हर कोई एक दुसरे को निरुपमा की जगह उसकी बहन और बेटी को रख कर देखने की सलाह दे रहा है. निरुपमा की जाति से आने वाला हर व्यक्ति प्रियाभांशु को ब्रह्मण वाद के काएदे के हिसाब से गरिया रहा है. मै कहती हू की दोनों ने जो किया वो सही था या गलत इसका फैसला करने वाले हम कौन होते है. और अगर हमें ही यह फैसला करना है तो सिर्फ प्रियाभांशु ही क्यू निरुपमा इस के लिए कम जिम्मेदार नहीं थी वो कोई बच्ची नहीं थी जिसे डरा धमका कर शारीरिक सम्बन्ध बनाया गया. सचाई क्या है यह सिर्फ मरने वाली जानती थी और उसका दोस्त प्रियाभांशु. इतना ही नहीं एक सज्जन ने तो बेटियों को ताले मे बंद कर के रखने की नसीहत भी दे डाली. पता नहीं उन सज्जन अपने घर की बहु बेटियों से कैसे पेश आते होंगे. उनका खुदा ही खैर करे. कुछ ऐसे भी है जो कहते है की माँ - बाप कभी अपने बच्चो की हत्या नहीं कर सकते है. शायद वो भारत मे होने वाली इज्जत के नाम पर होने वाली हत्यायो से अनजान है जहा खाप जैसा तालिबान भी रहता है. सबसे मजेदार बात तो यह है की निरुपमा के बाप -और माँ की बेबसी के लिए सभी दुहाई दे रहे है. मै पूछती हू की क्या वाकई निरुपमा के बाप ने सनातन धर्म का आचरण किया है या उसके आड़ मे अपनी क्रूर मानसिकता की एक झलक समाज के सामने रखी है. अगर उनके खुद के संस्कार जो की उनको बड़ा घमंड भी है की वो ब्रह्मण जाति से है इतने अच्हे होते तो निरुपमा इतना बड़ा कदम नहीं उठाती की एक पराये लड़के के बच्चे की माँ बिना शादी किये ही बन जाती. यहाँ सिर्फ बात निरुपमा की हत्या की नहीं है बात उस सिस्टम की है जहा एक पढ़े लिखे परिवार की लड़की, न की अगरी या निचली जाति की मारी जाती है. नैतिकता की दुहाई देने वाले जो खुद किसी न किसी संस्थान मै कार्यरत है क्या किसी भी लड़की को देख कर भूखे भेडियो की तरह लार नहीं टपकाते पर उसकी हत्या नहीं होती या उसका मजबूर लड़की का कितने बार पेट का काम तमाम हुआ, और फ़ला सज्जन कितनो अजन्मे के बाप बने यह सामने नहीं आ पाता. दुसरो की बेटिया खेलने की चीज है और अपने पर बात आये तो जान ही ले लो वाह क्या इंशाफ है. निरुपमा तो मर गई, तो वो तानो और सवालो से बच गई पर प्रियाभांशु अभी जिन्दा है इसलिए वो अकेला गुनेहगार है जिसने कथित रूप से यौन शोषण किया है अगर वो ब्रह्मण होता तो इतनी हाय तौबा जो मच रही है तब शायद नहीं मचती बल्कि उसके लिए हमदर्दी होती. अरे सज्जनों आपस मे दोसारोपन करना बंद करो और सिस्टम मे जो जाति रूपा दानव 21 शताब्दी मे एक घुन और की तरह लगा हुआ है उसे ख़तम करो न की बढाओ. क्यूंकि निरुपमा चाहे जिस भी तरह मारी हो वो पढ़े - लिखे समाज के मुह पर एक करार तमाचा है. उन सज्जनों से भी अनुरोध है कृपया अपने घर की बहु बेटियो को निरोध का और गर्भनिरोधक के बारे मे जरुर बताये क्यूंकि आप मे से कुछ की राय मे अगर निरुपमा उसका इस्तेमाल करती तो जान से नहीं मारी जाती. इसलिए अपनी बहु बेटियों और बहनों को यह जरुर बताये. क्यूंकि आप का या आपके बेटे या भाई का समाज कुछ बिगाड़ नहीं सकता क्यूंकि उनका यौन शोषण होगा तो भी वो पेट से नहीं होंगे. घर की इज्जत भी बच जाएगी. और अगरी जाति के शान वाली मुछ भी बनी रहेगी. कोडरमा मामले मे अगर दोषी प्रियाभांशु है तो उसे भी कडी से कडी सजा मिलनी चाहिये ताकि फिर किसी निरुपमा को अपने घर की इज़त बचने के लिए अपनी जान देनी पड़े यह अलग बात है की अब वो भी नहीं रही गली के बच्चे -बच्चे की जुबान पर है की वो माँ बनने वाली थी. और दोषी परिवार है तो फाँसी पर लटका दिया जाये ताकि उन जैसी सोच रखने वालो को यह समझ आ जाये की हत्या किसी बात का अंतिम विकल्प नहीं है.


http://www.bhadas4media.com/article-comment/5055-nirupama-pathak-death.हटमल

http://mohallalive.com/2010/05/08/hinduist-approach-on-nirupama-murder-case/

Blogvani.com

7 comments:

  1. यह देख कर आश्चर्य हो रहा है कि देश का युवा पत्रकार वर्ग किस तरह लंपट जैसा व्यवहार कर रहा है । पूरे प्रकरण मे रंजन का चरित्र बेहद संदिग्द्ध है । कुछ बातें हजम होने वाली नहीं हैं :

    १. यह कैसे संभव है कि निरुपमा तीन माह की गर्भवती थी और रंजन को पता ही नहीं था और तो और भा‌ई यह कह रहा है कि शायद निरुपमा को भी नहीं पता था । इस बात पर विश्वास करने के लि‌ए आ‌ई आ‌ई एम सी का प्रोफेसर , छात्र या कम से कम पत्रकार होना बहुत जरूरी है किसी और को यह बात हजम नहीं हो सकती ।

    २. आज के युग मे जब परिवार कल्याण के साधन उपलब्ध हैं और वह भी ७२ घंटे बाद तक , उस परिस्थिति मे गर्भ धारण का निर्णय , उसके बाद परिणाम के भयावह होने की स्थिति मे अनभिज्ञता का प्रदर्शन , क्या शब्द लिखा जाय , ऐसे महापुरुष के लिए ।

    ३. वह व्यक्ति बार बार एस‌एम‌एस दिखा रहा है जो कि निरुपमा ने भेज कर कहा कि तुम को‌ई खतरनाक कदम मत उठाना ( यानी आत्महत्या जैसा ) । इन महाशय का को‌ई कदम या मनोभाव इस स्तर के दुख का लगता तो नहीं है ।

    ४. जिसके लिए न्याय मांग रहे हैं , उसका अंतिम दर्शन करने भी नहीं गये , अरे अकेले डर रहे थे तो अपने दो चार दोस्त साथ ले लेते , कैसे प्रेमी हो , तुम्हारी प्रेमिका को लगता था कि उसके वियोग में तुम आत्म हत्या तक कर सकते हो और तुम डर के मारे उसका अन्तिम दर्शन करने नहीं गये । क्या निरुपमा ने तुम्हे ठीक से पहचाना नहीं ।

    शायद निरुपमा ने सबके – रंजन , उसके परिवार , अपने परिवार और समाज के बारे मे गलत अंदाजा लगा लिया ।और इसकी कीमत अपनी जान देकर चुकाई ।

    ५. रंजन ने शादी के लि‌ए अपने परिवार की रजामन्दी कब ली थी , और ६ मार्च की शादी के लि‌ए क्या अपने पिता का आशीर्वाद ले लिया था ।

    ६. प्रेम एक बात है , विवाह पूर्व योन संबन्ध दूसरी बात और इस उन्नतशील विचार पुरुष का बिना विवाह के बच्चे का पिता बनने का साहस तो क्रांतिकारी ही कहा जा सकता है ।

    ७. यह महाशय क्या अमेरिका मे पले बड़े हु‌ए या बिहार मे , भारत मे । क्या हमारे यहां यह एक सामान्य बात है । इनके परिवार की कितनी महिला‌एं या पुरुष अब तक बिना विवाह के माता पिता बन चुके हैं ।

    ८.हत्या जघन्य है लेकिन उसके लि‌ए परिस्थितियों का निर्माण करने का कार्य किसने किया ? क्या शुतुरमुर्ग की तरह गर्दन जमीन मे धंसा देने से यह देश अमेरिका बन जायेगा ।

    प्रभांसु हीरो नहीं है, नहीं है, नहीं है । वह एक कायर है और उसे हीरो की तरह दिखाने का प्रयास निन्दनीय है

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  2. पूरे मसले पर किसी नतीजे पर पहुंचने से पहले ऐसी हड़बड़ी क्यों मामला शारीरिक संबंधों से ज्यादा उस भावना का है जो निरुपमा और प्रियभांशु के बीच था। ऐसी दुश्वारियां ऐसे मसलों पर आती हैं और उसके बीच से सही रास्ता निकालना समझदारी है।

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  3. aapne sahi likha hai Shweta. Mere Khyal se ab logon ko apni mansikta badalne ki jarurat hai. Naitik taur par bhi jab bacche bade ho jaate hain to unhe apne decision lene dena chahiye, kanun to isse izazat deta hi hai.
    Purushottam

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  4. i saw your blog & your comment on Nirupma-Priybhanshu episode. Good one. Keep it up.

    Bishan

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  5. सही लिखा है, जितना कसूर प्रियभांशु का है उतना ही निरुपमा का भी बनता है लेकिन अब अकेला प्रियभांशु ही भुगत रहा है, लेकिन वो कायस्थ की बजाय किसी और जाति का भी होता तो उसके साथ यही होता, लेकिन वो कहीं से 'बेचारा' नहीं है क्योंकि वो इस पूरे बवाल को रोक भी सकता था, निरुपमा की जान भी बचा सकता था, लेकिन या तो केवल अपनी मजबूरियों के तले दबता चला गया या फिर वो कुछ ऐसा ही चाहता था लेकिन खुद को वो बचा नहीं पा रहा।

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  6. "प्रभांसु हीरो नहीं है, नहीं है, नहीं है । वह एक कायर है और उसे हीरो की तरह दिखाने का प्रयास निन्दनीय है"

    बिलकुल सही बात है .. अच्छा विश्लेषण ..

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