Krantikari Sipahi
कलम की ताकत सबसे बड़ी ताकत होती है, दुनिया की हर दौलत से बड़ी दौलत... गर यकीन न आये तो आजमा कर देख लो..............
Thursday, May 31, 2012
Saturday, May 7, 2011
“राजीव गाँधी एक्सीलेंस अवार्ड” 2011- से सम्मानित क्रांतिकारिसिपाही श्वेता रश्मि
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से प्रकाशित ”सीमापुरी टाइम्स” राष्ट्रीय हिंदी समाचार पत्रिका समाज में विभिन्न क्षेत्रो में किये गए उत्कृष्ट कार्यों हेतु ”राजीव गाँधी एक्सीलेंस अवार्ड-२०११” का आयोजन स्पीकर हॉल कंस्टीट्यूशन क्लब वी.पी.हाउस रफ़ी मार्ग,नई दिल्ली में कर रही है.अवार्ड के लिए विभिन्न क्षेत्रो से लोगो का चयन किया गया है.यह अवार्ड श्री श्रीप्रकाश जायसवाल केंद्रीय कोयला मंत्री,भारत सरकार एवं अन्य वरिष्ट मंत्री गणों द्वारा प्रदान किया जायेगा.अवार्ड ग्रहण करने वाले प्रमुख लोगो में डॉ. ओ.पी.सिंह (पूर्व महानिदेशक स्वास्थ्य उ.प्र.),डॉ.संजय महाजन,सुश्री अलका लाम्बा (समाज सेवा),डॉ.जगदीश गाँधी,संस्थापक प्रबंधक (सी.एम.एस.), श्री ओ.एस.यादव (शिक्षा), तन्मय चतुर्वेदी-सा-रे-गा-मा-पा लिटिल चैम्प (टैलेंट हंट), श्री पंकज शुक्ल,संपादक,नई दुनिया ,श्री चंडीदत्त शुक्ल,वरिष्ट समाचार संपादक,स्वाभिमान टाइम्स,श्री अमलेंदु उपाध्याय,संपादक हस्तक्षेप.कॉम,श्री फज़ल इमाम मलिक,वरिष्ट उप संपादक,जनसत्ता (प्रिंट मीडिया), सुश्री श्वेता रश्मि,प्रोड्यूसर महुआ न्यूज़ (इलेक्ट्रानिक मीडिया) ,श्री अमिताभ ठाकुर,आईपीएस (समाज सेवा),श्री बालेन्दु शर्मा दाधीच (टेक्नोलाजी),श्री पंकज चतुर्वेदी,संपादक,प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया (लेखन), श्री ललित गाँधी (रियल स्टेट), श्री सुनील सरदार (सामाजिक परिवर्तन),श्री राकेश राजपूत (अभिनय),श्री एम.के.चौबे,जी.एम. ,अदानी ग्रुप (बेस्ट मैनेजमेंट),श्री कमल कान्त तिवारी (बाल सेवा),श्री विमलेश त्रिपाठी (साहित्य), आदि है
प्यारी मां
मेरे मित्र प्रमोद द्वारा लिखित एक प्यारी सी कविता जो माँ को समर्पित है .
सपने में आईं मां
कल रात सपने में आईं मां...
मूंदे नयनों में इक लौ जला गईं मां।
सालों पहले,
उंगली पकड़कर चलना सिखाया,
जिंदगानी की महफ़िल में इक शमा जलाया।
मगर,
इस वीरान शहर में,
जज़्बातों के श्मसान में,
अब, कोई अपनापन दिखाता नहीं,
अरमानों की सीढ़ियां चढ़ाता नहीं,
लड़खड़ाने पर भी कोई उठाता नहीं,
तब, मां की कमी खूब खलती है....।
देर रात जब,
रंगीन दुनिया बेनूर हो जाती है,
चंदा मामा भी आलस्य के आगोश में समा जाता है,
तब, रात की तन्हाई में,
दीये का उजाला लिए,
चुपचाप,
सिरहाने आती हैं मां....।
और,
बंद आंखों में
जीने की ललक जगा जाती हैं मां...
कहती हैं,
हसरतों की उड़ान टलने ना दो,
जिंदगी की रफ्तार थमने ना दो,
ये अंधेरा वक्त दो वक्त का है,
शाम-बेशाम क़ाफ़ूर हो जाएगा।
कल रात सपने में आईं मां...
मूंदे नयनों में इक लौ जला गईं मां।
सपने में आईं मां
कल रात सपने में आईं मां...
मूंदे नयनों में इक लौ जला गईं मां।
सालों पहले,
उंगली पकड़कर चलना सिखाया,
जिंदगानी की महफ़िल में इक शमा जलाया।
मगर,
इस वीरान शहर में,
जज़्बातों के श्मसान में,
अब, कोई अपनापन दिखाता नहीं,
अरमानों की सीढ़ियां चढ़ाता नहीं,
लड़खड़ाने पर भी कोई उठाता नहीं,
तब, मां की कमी खूब खलती है....।
देर रात जब,
रंगीन दुनिया बेनूर हो जाती है,
चंदा मामा भी आलस्य के आगोश में समा जाता है,
तब, रात की तन्हाई में,
दीये का उजाला लिए,
चुपचाप,
सिरहाने आती हैं मां....।
और,
बंद आंखों में
जीने की ललक जगा जाती हैं मां...
कहती हैं,
हसरतों की उड़ान टलने ना दो,
जिंदगी की रफ्तार थमने ना दो,
ये अंधेरा वक्त दो वक्त का है,
शाम-बेशाम क़ाफ़ूर हो जाएगा।
कल रात सपने में आईं मां...
मूंदे नयनों में इक लौ जला गईं मां।
Friday, October 1, 2010
अयोध्या पर फैसला एक ठंडी हवा के झोके के जैसा है
एक लम्बा इन्तजार और लाखो की कुरबानिया,उसके बाद आया अयोध्या पर फैसला एक ठंडी हवा के झोके के जैसा है, बहूत चीख लिए हम की यह हिन्दू के अधिकार का मामला है और मुसलमान का हक मारा जा रहा है ,बहूत खून बहा लिए हमारे सब्र के इम्तिहान का .पर आखिर क्या राजनितिक गलियारे मे रहने वाले लोगो के अलावा किसी आम आदमी की मनसा झगडे की रही है . जी नहीं ? पर पिछले कई साल से सुलग रहे इस विवादास्पद मामले पर जिस तरह का फैसला आया है यह तारीफ के काबिल है . आम जनता ने इस फैसले का स्वागत गर्मजोशी के साथ किया .है क्यूंकि एक लम्बा अरसा , और अपनों खोने का दर्द वह बखूबी जानते है की जब भी नस्लीय हिंसा होती है तो नुक्सान सिर्फ आम आदमी का ही होता है . भारत तो शुरु से ही गंगा जमुनी तहजीब का हितैषी रहा है. यहाँ कोई भी धर्म हो सबका उचित स्थान और सम्मान है, चाहे कोई भी त्यौहार हो उसकी धमक देश के चारो कोनो मे महसुश की जाती है . इसलिए हमें दिल खोलकर इस फैसले का स्वागत करना चाहिये .
Monday, August 16, 2010
वाकई हम आज़ाद देश मे रहते है
कल देश को आजाद हुए 64 साल हो गए. और देश के हर राज्य और जिले मे इसका नजारा भी बखूबी देखने को मिला. आजाद हवा मे साँस लेना वाकई एक खुबसूरत अहसास है जिसे हम शब्दों मे बंया नहीं कर सकते है. पर क्या हम वाकई सही मायनों मे आज़ाद है यह सोचने वाली बात है. क्यूंकि डॉ मनमोहन सिंह का देश के नाम कल का संबोधन कह रहा था की हमारे देश के हर नागरिक को जीने की आज़ादी है और हमने बाकि सरकारों के मुकाबले विकास पर काफी ध्यान दिया है और उचित कदम उठाया है.
सही मायनों मे क्या ऐसा है ? देश मे इज्जत के नाम पर कत्ल और भी ज्यादा और सम्मान के साथ किये जाने लगे है और अभी भी छोटे मजदूरों के रूप मे हमें बच्चो के दर्शन हो जाते है. यह तरक्की की है हमने पिछले 64 सालो मे, घरेलु उपयोग की वस्तुओ मे इतनी बढ़ोतरी हुई है की दैनिक आय वाले बेबस हो गए है दो जून की रोटी का प्रबंध करने मे. उन्होंने नरेगा की भी पुरजोड़ तारीफ की पर क्या वाकई मे नरेगा मे कार्यरत मजदूरों को बिना दान्धली के पैसे मिल पाते है? नहीं
यह है हमारे देश की तरक्की और सरकार अपनी पीठ ठोकना नहीं भूल रही है....................................
सही मायनों मे क्या ऐसा है ? देश मे इज्जत के नाम पर कत्ल और भी ज्यादा और सम्मान के साथ किये जाने लगे है और अभी भी छोटे मजदूरों के रूप मे हमें बच्चो के दर्शन हो जाते है. यह तरक्की की है हमने पिछले 64 सालो मे, घरेलु उपयोग की वस्तुओ मे इतनी बढ़ोतरी हुई है की दैनिक आय वाले बेबस हो गए है दो जून की रोटी का प्रबंध करने मे. उन्होंने नरेगा की भी पुरजोड़ तारीफ की पर क्या वाकई मे नरेगा मे कार्यरत मजदूरों को बिना दान्धली के पैसे मिल पाते है? नहीं
यह है हमारे देश की तरक्की और सरकार अपनी पीठ ठोकना नहीं भूल रही है....................................
Sunday, May 9, 2010
उसके रिश्तो की परत लोग प्याज़ के छिलकों के तरह बड़ी बेदर्दी से उतारने मे लगे..........
पीछे काफी दिनों से निरुपमा की हत्या और आत्महत्या की कहानी सारे न्यूज़ चैनल से लेकर अखबारों और न्यूज़ साईट पर भरी पड़ी है. एक पत्रकार को न्याय दिलवाने के लिए जिस तरह सब एकजुट हुए है वह काबिले तारीफ है. यह सवाल मेरे मन मे उठता है की आखिर क्यू निरुपमा को मारा गया या उसने खुद को मार दिया. जाँच की जा रही है और कुछ नतीजा भी निकल कर सामने जरुर आएगा. न चाहते हुए भी मे इस विषय पर लिखने को मै बिबस हो गई क्यूंकि मैंने देखा एक लड़की जिसकी जान गई और वो लड़का जिसने उसके साथ प्यार किया, उसके रिश्तो की परत लोग प्याज़ के छिलकों के तरह बड़ी बेदर्दी से उतारने मे लगे हुए है. पढ़े लिखे लोग समाज मे जिनका एक रुतवा है पहचान है उनकी सोच इस बात से ज्यादा दुखी है की उनके बीच शारीरिक रिश्ते थे, न की इस बात से की उसकी जान चली गई या ले ली गई, और खालिश देसी लफ्जों मे कहे तो वो पेट से थी. उसकी गलती सिर्फ इतनी थी की तथाकथित समाज के नियमनुसार उसने अपना पेट नहीं गिराया था. जिसकी वजह से उसकी जान गई. यह मेरा कहना नहीं है कुछ मानिये सज्जनों का है आपको मै साईट का लिंक भी दिए देती हू ताकि आप उनके विचारो को भी जान सके. खैर आगे चलते है हर कोई एक दुसरे को निरुपमा की जगह उसकी बहन और बेटी को रख कर देखने की सलाह दे रहा है. निरुपमा की जाति से आने वाला हर व्यक्ति प्रियाभांशु को ब्रह्मण वाद के काएदे के हिसाब से गरिया रहा है. मै कहती हू की दोनों ने जो किया वो सही था या गलत इसका फैसला करने वाले हम कौन होते है. और अगर हमें ही यह फैसला करना है तो सिर्फ प्रियाभांशु ही क्यू निरुपमा इस के लिए कम जिम्मेदार नहीं थी वो कोई बच्ची नहीं थी जिसे डरा धमका कर शारीरिक सम्बन्ध बनाया गया. सचाई क्या है यह सिर्फ मरने वाली जानती थी और उसका दोस्त प्रियाभांशु. इतना ही नहीं एक सज्जन ने तो बेटियों को ताले मे बंद कर के रखने की नसीहत भी दे डाली. पता नहीं उन सज्जन अपने घर की बहु बेटियों से कैसे पेश आते होंगे. उनका खुदा ही खैर करे. कुछ ऐसे भी है जो कहते है की माँ - बाप कभी अपने बच्चो की हत्या नहीं कर सकते है. शायद वो भारत मे होने वाली इज्जत के नाम पर होने वाली हत्यायो से अनजान है जहा खाप जैसा तालिबान भी रहता है. सबसे मजेदार बात तो यह है की निरुपमा के बाप -और माँ की बेबसी के लिए सभी दुहाई दे रहे है. मै पूछती हू की क्या वाकई निरुपमा के बाप ने सनातन धर्म का आचरण किया है या उसके आड़ मे अपनी क्रूर मानसिकता की एक झलक समाज के सामने रखी है. अगर उनके खुद के संस्कार जो की उनको बड़ा घमंड भी है की वो ब्रह्मण जाति से है इतने अच्हे होते तो निरुपमा इतना बड़ा कदम नहीं उठाती की एक पराये लड़के के बच्चे की माँ बिना शादी किये ही बन जाती. यहाँ सिर्फ बात निरुपमा की हत्या की नहीं है बात उस सिस्टम की है जहा एक पढ़े लिखे परिवार की लड़की, न की अगरी या निचली जाति की मारी जाती है. नैतिकता की दुहाई देने वाले जो खुद किसी न किसी संस्थान मै कार्यरत है क्या किसी भी लड़की को देख कर भूखे भेडियो की तरह लार नहीं टपकाते पर उसकी हत्या नहीं होती या उसका मजबूर लड़की का कितने बार पेट का काम तमाम हुआ, और फ़ला सज्जन कितनो अजन्मे के बाप बने यह सामने नहीं आ पाता. दुसरो की बेटिया खेलने की चीज है और अपने पर बात आये तो जान ही ले लो वाह क्या इंशाफ है. निरुपमा तो मर गई, तो वो तानो और सवालो से बच गई पर प्रियाभांशु अभी जिन्दा है इसलिए वो अकेला गुनेहगार है जिसने कथित रूप से यौन शोषण किया है अगर वो ब्रह्मण होता तो इतनी हाय तौबा जो मच रही है तब शायद नहीं मचती बल्कि उसके लिए हमदर्दी होती. अरे सज्जनों आपस मे दोसारोपन करना बंद करो और सिस्टम मे जो जाति रूपा दानव 21 शताब्दी मे एक घुन और की तरह लगा हुआ है उसे ख़तम करो न की बढाओ. क्यूंकि निरुपमा चाहे जिस भी तरह मारी हो वो पढ़े - लिखे समाज के मुह पर एक करार तमाचा है. उन सज्जनों से भी अनुरोध है कृपया अपने घर की बहु बेटियो को निरोध का और गर्भनिरोधक के बारे मे जरुर बताये क्यूंकि आप मे से कुछ की राय मे अगर निरुपमा उसका इस्तेमाल करती तो जान से नहीं मारी जाती. इसलिए अपनी बहु बेटियों और बहनों को यह जरुर बताये. क्यूंकि आप का या आपके बेटे या भाई का समाज कुछ बिगाड़ नहीं सकता क्यूंकि उनका यौन शोषण होगा तो भी वो पेट से नहीं होंगे. घर की इज्जत भी बच जाएगी. और अगरी जाति के शान वाली मुछ भी बनी रहेगी. कोडरमा मामले मे अगर दोषी प्रियाभांशु है तो उसे भी कडी से कडी सजा मिलनी चाहिये ताकि फिर किसी निरुपमा को अपने घर की इज़त बचने के लिए अपनी जान देनी पड़े यह अलग बात है की अब वो भी नहीं रही गली के बच्चे -बच्चे की जुबान पर है की वो माँ बनने वाली थी. और दोषी परिवार है तो फाँसी पर लटका दिया जाये ताकि उन जैसी सोच रखने वालो को यह समझ आ जाये की हत्या किसी बात का अंतिम विकल्प नहीं है.
http://www.bhadas4media.com/article-comment/5055-nirupama-pathak-death.हटमल
http://mohallalive.com/2010/05/08/hinduist-approach-on-nirupama-murder-case/
http://www.bhadas4media.com/article-comment/5055-nirupama-pathak-death.हटमल
http://mohallalive.com/2010/05/08/hinduist-approach-on-nirupama-murder-case/
Monday, April 12, 2010
कुदरत से खिलवाड़ मत करो यह तो बच्चे है जी .................
भारत शुरू से ही एक धार्मिक भावनाओ वाला देश रहा है. और आज भी उसके साक्ष्य हमें चारो ओर देखने को मिल जाते है, चाहे काशी मे मोक्ष्य हो या वृन्दावन मे कान्हा के बचपन और युवावस्था की घटनाये. लोगो का धार्मिक रुझान साफ जाहिर है. आज की युवा पीढ़ी भी कम धार्मिक नहीं है और न ही वो मंदिर और मस्जिद जाने मे कोई गुरेज करती है. लेकिन इन सब से इतर एक और वर्ग है जो प्रकृति के नियमो को तोड़ने पर अमादा दिखाई देती है. मानव शरीर और उसका आचरण कर्मो और संस्कारो के अनुरूप ही कार्य करता है. पर आज के आधुनिक माता- पिता एक ऐसा बच्चा जनना चाहते है जो सुपरमैन तो नहीं पर ऐसा जरुर होना चाहिये जिसके अंदर कोई भीं बुरे कर्म या कमी न हो. इसके लिए बाकायदा गर्भावस्था का समापन वो ज्योतिषी को महूर्त दिखा कर कर रहे है. उस तय समय सीमा मे डॉ. आपरेशन के द्वारा बच्चो को धरती पर लाने का कार्य सम्पन कर रहे है. जो निहायत गलत है और प्रकृति के नियमो के बिलकुल खिलाफ है. माता- पिता का तर्क यह है की इससे हम अपने बच्चो को बहुत सारी बुरे ग्रहों के प्रभाव से बचा लेंगे. आप जरा सोचिये की अगर ऐसा होता तो क्या हर घर मे एक प्रधानमंत्री और विश्व सुंदरी न पैदा हो जाते. सबसे मजेदार बात तो यह है ऐसा करने वाले लोगो की तादाद मे पढ़े लिखे और उच्च पदों पर बैठे लोगो की जमात सबसे ज्यादा है. जिनके पास अपने होने वाले बच्चे को देने के लिए न तो समय है और न ही उचित शिक्षा इसलिए वो सोचते है है भैया ज्योतिष के हिसाब से बच्चा पैदा करो और उसे और कुछ देने की जरुरत नहीं है. वो अपने आप संस्कारवान बन जायेगा. यह परविर्ति जिस तरह से जोर पकरती जा रही है वो समाज के लिए और प्रकृति के लिए बहुत खतरनाक है. यह जो ज्योतिषी अजन्मे बच्चे का जन्म मुहूर्त के मुताबिक तय कर रहे है क्या उनका अपना भविष्य भी इसी तरह चल रहा है. मै एक ऐसे पंडित को जानती हू जो लोगो की कुण्डलिया बांचा करते थे. पर उनकी खुद की बेटी की अभी तक शादी नहीं हुई और दो बेटे है जो बेरोजगार है आगे की बात आप खुद ही कल्पना कर लीजिये. माता पिता को बच्चे को अपने मुताबिक पैदा न कर के प्रकृति के अनुरूप धरती पर आने दे और कोशिश करे की उसे अच्छे संस्कार दे कर एक अच्हा नागरिक और एक अच्हा इन्सान बनाये, जो आपके आने वाले भविष्य मे आपकी देख भाल कर सके, आपको प्यार दे सके. आप लाख जतन कर लो, मुहूर्त के मुताबिक जन्म दे लो पर जब वो एक अच्हा इन्सान ही न बन पाए तो क्या फायदा होगा, क्या होगा जब उसके अन्दर संस्कारों की कमी हो चरित्र का कमजोर हो. धार्मिक होना अच्छी बात है पर उसे हथियार बना कर कुदरत के खिलवाड़ अच्छा नहीं है. बच्चे तो कच्ची मिट्टी के समान होते है उसे आप जैसा रूप देंगे वो उसी रूप मे खुद को ढाल लेंगे. इसलिए उनके साथ खिलवाड़ मत करो. यह तो बच्चे है ............................ दिल के सच्चे है जी इन्हें जोड़ तोड़ से पैदा मत करो.
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